Wednesday, April 15, 2009

कविता

आदत
- श्यामल सुमन

मेरी यही इबादत है।
सच कहने की आदत है।।

मुश्किल होता सच सहना तो।
कहते इसे बगावत है।।

बिना बुलाये घर आ जाते।
कितनी बड़ी इनायत है।

कभी जरूरत पर ना आते।
इसकी मुझे शिकायत है।।

मीठी बातों में भरमाना।
इनकी यही शराफत है।।

दर्पण दिखलाया तो कहते।
देखो किया शरारत है।।

झूठ कभी दर्पण न बोले।
बहुत बड़ी ये आफत है।।

ऐसा सच स्वीकार किया तो।
मेरे दिल में राहत है।।

रोज विचारों से टकराकर।
झुका है जो भी आहत है।।

सत्य बने आभूषण जग का।
यही सुमन की चाहत है।।

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