Sunday, November 9, 2008

कविता



दोस्ती का तराना


- सुश्री डी. अर्चना, चेन्नै ।

दोस्त, दोस्ती, दोस्ताना
गले मिलाकर, खुले दिल से
बुलंदी आवाज़ में गाए
ख़ुशियों का नया तराना
भूल जाएं ग़म पुराना
याद आए सरगम का
नया तराना
मिल के गाएं
साज सिंगार का फ़साना
सबको याद आए जीवन का नया अफ़साना
बीत गया जो कल पुराना
पल पल याद आए
ख़ुशियों का सज़ाना
रहे या न रहे ये ठिकाना
बस चंद अल्फ़ाज का
रहे ज़माना ।
सदियों तक याद रहे यार ये याराना
दिलों में जमा रहे अनमोल ख़जाना
अय! यार यारी ये याराना
बन गया ज़िंदादिली का घराना
कभी अलबिदा हो...दूर वादियों में...
ग़मों से कभी न घबराना
काटों से बेफ़िजूल न आंसू बहाना
अगर ज़रूरत हो तो, हमें भी याद करना
मन के आँगन में खुशी के फूल खिलाना
दिल के द्वारा दीवाली के दीप जलाना
अंधेरों को चीरकर रोशनी फैलाना
वीरानों को दूर कर
सरगम के गीत सजाना
बहे जीवन-मरण के बीच एक मधुर झरना
सभी को इन्सानियत का मूल्‍य बताना
समर्पण व एकता की अर्चना करना
भावात्मक एकता को जगाना
सदा तुम देश प्रेमी बनकर
देश के विकास में हाथ बढ़ाना ।

हम किसी से कम नहीं कहकर
ज़माने को दिखाना
पूरे विश्‍व में भारत का नाम उजा़गर करना
हम रहें या न रहें देश आबाद रखना
अय दोस्त !
ये दोस्ती को यादगार बनाना
दुवा है कि ख़ुदा हमेशा सलामत रखे ।

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