Tuesday, October 28, 2008

ग़ज़ल

ग़ज़ल

-कमलप्रीत सिंह

न बात कोई हवा से की


न गुफ़्तगू खिजां से की


सुबहु को हम खामोश थे


शाम ऐ ग़ज़ल जुबां से की


कई और भी हम ख़याल थे


पर बात मेहरबां से की


है मिली हकीकत ऐ ज़िंदगी


शुरुआत दास्ताँ से की


वहां रौशनी की कमीं न थी


पर बात कहकशां से की


ज़िक्र ऐ शिकायत क्या किए


जब बात राजदान से की


न बात कोई हवा से की


न गुफ़्तगू खिजां से की


सुबहु को हम खामोश थे

शाम ऐ ग़ज़ल जुबां से की

1 comment:

  1. आपकी ग़ज़ल है बेमिसाल आपकी पेशकश लाजवाब/ उम्मीद है किऔर भी शानदार ग़ज़लों की वर्ष होगी। शुभ कम्नाये।

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