Monday, September 8, 2008

तेलुगु भाषा एवं साहित्य

तेलुगु भाषा एवं साहित्य

अंतरजाल पर तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर हिंदी में अपेक्षित मात्रा में सामग्री उपलब्ध न होने के कारण अपने पाठकों के लिए युग मानस की ओर से तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर धारावाहिक लेखमाला का प्रकाशन आरंभ किया जा रहा है । तेलुगु के युवा कवि उप्पलधडियम वेंकटेश्वरा अपने लेखों के माध्यम से तेलुगु भाषा एवं साहित्य के विविध आयामों पर प्रकाश डाल रहे हैं । इस क्रम में दूसरा लेख यहाँ प्रस्तुत है । - सं.


तेलुगु भाषा की विशिष्टताएं


- उप्पलधडियम वेंकटेश्वरा

भाषाविदों का मानना है कि तेलुगु, तमिल, कन्नड आदि द्रविड भाषाएं अपनी पूर्ववर्ती मूल द्रविड भाषा (proto Dravidian language) से विकसित हुई हैं । एक ही स्रोत से प्रादुर्भूत इन भगिनी भाषाओं के व्याकरण, शब्द-भंडार आदि में अनेक समानताएं पाई जाती हैं । फिर भी द्रविड भाषाओं में तेलुगु की अपनी विशेष पहचान है । वह द्रविड भाषा-परिवार की भाषाओं में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा तो है ही, साथ ही भाषाई दृष्टि से वह इस परिवार की अन्य तीन प्रमुख भाषाओं से थोड़ा हटकर अलग दिखती है।

द्रविड़ भाषा-परिवार में कुल 26 भाषाएं हैं, जिनमें चार भाषाएं प्रमुख हैं - तेलुगु, तमिल, कन्नड और मलयालम । द्रविड भाषा-परिवार को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है ।
(क) उत्तर द्रविड भाषाएं
(ख) मध्य द्रविड भाषाएं
(ग) दक्षिण द्रविड भाषाएं
तेलुगु मध्य द्रविड भाषा वर्ग की एक-मात्र विकसित भाषा है जबकि तमिल, कन्नड और मल्यालम, ये तीनों दक्षिण द्रविड भाषा वर्ग की विकसित भाषाएं हैं । यह तेलुगु भाषा के अपनेपन का द्योतक है । यहां प्रख्यात भाषा-वैज्ञानिक डॉ. भद्रिराजु कृष्णमूर्ति के शब्द उल्लेखनीय हैं कि तेलुगु अपने दक्षिण और पश्चिम में प्रयुक्त तमिल और कन्नड के बजाय उत्तर और पूर्व में प्रयुक्त 'कुई' आदि भाषाओं के निकट है । अत: यह कहना समीचीन होगा कि द्रविड भाषा-परिवार की विकसित भाषाओं में तेलुगु निराली है ।
2. तेलुगु भाषा 'अंजत' याने स्वरांत भाषा है तथा यही इसके अनुपम माधुर्य का कारण है।
3. तेलुगु भाषा की विशेषता के बारे में 'तेलुगु-अंग्रेजी कोश' के प्राक्कथन में सर सी.पी. ब्राउन का मंतव्य इस संदर्भ में विशेष रूप से उल्लेखनीय है -

"The etymology of Telugu is full of suggestive meaning. The words for father (తండ్రి - तंड्रि) and mother (తల్లి - तल्लि) are undoubtedly connected with the root Ta (త - त) ie., to bring (eg. తెచ్చు- तेच्चु ) and literally mean 'He who brings' or 'she who brings' respectively. The Telugu word for son-in-law (అల్లుడు - अल्लुडु) signifies 'one who weaves' (i.e. relationship between two families). The word for the hand (చెయ్యి - चेय्यि) comes from (చెయు - चेयु) 'to do' and means 'that which does' (i.e. works) and the word for the right hand (కుడిచెయ్యి - कुडिचेय्यि) means the food (కూడు - कूडु) eating hand, while the left hand (ఎడమచెయ్యి - एडमचेय्यि) i.e. 'the distant hand',

तेलुगु में 'एडम' शब्द का अर्थ है दूरी । इसी प्रकार 'नडुम' शब्द का अर्थ है 'मध्य' और शरीर के मध्य-भाग याने कमर के लिए तेलुगु शब्द है 'नडुमु' । 'विनु' शब्द का अर्थ है 'सुनना' तथा कान के लिए तेलुगु शब्द है 'वीनु' । और भी उदाहरण दिए जा सकते हैं, लेकिन इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए यही काफी है कि तेलुगु शब्दों की व्युत्पत्ति सारगर्भित है ।


तेलुगु, तेनुगु और आंध्र शब्दों की व्युत्पत्ति

पहले हम देख चुके हैं कि तेलुगु, तेनुगु और आंध्र शब्द पर्याचवाची हैं और इनमें 'तेलुगु' तथा 'आंध्र' शब्द काफ़ी प्रचलित हैं । 'तेनुगु' शब्द का भी यत्र-तत्र प्रयोग किया जाता है । अब इन शब्दों की व्युत्पत्ति पर विचार करेंगे ।
'तेलुगु' शब्द की व्युत्पत्तिः- तेलुगु' शब्द की व्युत्पत्ति के बारे में विद्वानों में मतभेद हैं । कुछेक मत नीचे प्रस्तुत हैं -
(i) तेलि + अगु तेलुगु याने स्वच्छ - भाषा । 'तेलि' शब्द का अर्थ है स्वच्छ और 'अगु' शब्द अर्थ है होना, यानि तेलुगु माने स्वच्छ भाषा । चूंकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी भाषा को स्वच्छ ही मानता है, अत: यह व्युत्पत्ति तर्क-संगत नहीं है।
(ii) तिलों के जैसे हजारों संख्या में गोधन से युक्त देश की भाषा 'तेलुगु' कहलाती है । यह व्युत्पत्ति भी ठीक नहीं लगती, क्योंकि तिल-सदृश गोधन तो केवल कल्पना का ही विषय हो सकता है ।
(iii) कुछ विद्वानों के अनुसार 'तेलुगु' शब्द 'तलैंग' शब्द से निष्पन्न हुबा है । इनका मानना है कि प्राचीन काल में बर्मा में रहने वाले 'तलैंग' नामक जाति के लोग आंध्र-प्रांत में आ बस गए । इसके कारण यहां की भाषा को 'तेलुगु' की संज्ञा दी गई । इसके विरोध में कहा जाता है कि बीच में दीर्घ से युक्त 'तलैंग' जैसे शब्द प्राचीन तेलुगु भाषा में न मिलने के कारण यह व्युत्पत्ति तर्क-संगत नहीं है।
(iv) कुछ विद्वान 'तेलुगु' शब्द को पुरानी बाबिलोनियन भाषा की 'अलीक तिलमुन' शब्द से जन्म मानते हैं ।
(v) कुछ विद्वान 'तेलुगु' शब्द को 'त्रिलिंग' शब्द से उत्पन्न मानते हैं । उनके अनुसार तेलुगु भाषा-भाषी क्षेत्र तीन पवित्र शिव-मंदिरों (श्रीशैलम्, कालेश्वरम् तथा दाक्षारामम) से युक्त होने के कारण इस भू-भाग का नाम 'त्रिलिंग' क्षेत्र हो गया तथा इस क्षेत्र की भाषा 'त्रिलिंग भाषा' कहलाई, जिसका बिगड़ा हुआ रूप है तेलुगु । लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि जब आंध्र-प्रांत में शैव-धर्म प्रचलित था, तब 'तेलुगु' शब्द का संस्कृतीकरण करके 'त्रिलिंग' शब्द को प्रचार में लाया गया ।
(vi) एक और व्युत्पत्ति यह दी जाती है कि 'तेलिवाह' नदी जां बहती है, उस क्षेत्र की भाषा का नाम ही 'तेलुगु' है । तेलि (याने सफेद) + वाह (याने प्रवाह) = तेलिवह बनता है, जिसका अर्थ है कि सफेद वर्ण के जल प्रवाह तथा इससे गोदावरी नदी अभिप्रेत है । (उल्लेखनीय है कि आंध्र-प्रांत की एक और जीव नदी 'कृष्ण' का नाम उसके जल के श्याम वर्ण पर ही आधारित है ।)
(vii) तेल + गु = तेलुगुः- मूल - द्रविड भाषा में 'तेल' धातु का अर्थ है – स्पष्टता । कुछ विद्वान मानते हैं कि इस 'तेलु' धातु के साथ उपसर्ग 'गु' के जुड़ने से 'तेलुगु' शब्द निष्पन्न हुआ है । याने किसी भी विचार को स्पष्ट रूप में कहने की क्षमता रखने वाली भाषा है 'तेलुगु' । उल्लेखनीय है कि 'विरुगु' (कटना) ‘करुगु’ (पिघलना) जैसे तेलुगु शब्द मूल-धातु के साथ जुड़ने से निष्पन्न शब्द है।
(viii) कुछ विद्वानों की राय है कि 'तेलुपु' शब्द से 'तेलुगु' शब्द उत्पन्न हुआ है । 'तेलुपु' शब्द के दो अर्थ हैं - ;(1) सफेद रंग ; (2) बताना । 'तेलुपु' शब्द की व्युत्पत्ति के रूप में 'बताना' अर्थ को मानकर वे कहते हैं कि जो भाषा विचारों को स्पष्ट रूप में बताती है, वह भाषा 'तेलुगु' है । अपने मन के समर्थन में ये विद्वान बताते हैं कि एक और द्रविड भाषा 'ब्राहुई' को 'ब्रूडुई' भी कहा जाता है और संस्कृत में 'बू' शब्द का अर्थ है 'बोलना' ।

'तेलुगु' शब्द की व्युत्पत्तिः-

(i) तेने + अगु = तेनुगु : 'तेने' शब्द का अर्थ है शहद और 'अगु' शब्द का अर्थ है होना । याने शहद (तेने) जैसी मीठी भाषा 'तेनुगु' कहलाई।
(ii) कुछ विद्वानों ने 'तेन्नु' शब्द से 'तेनुगु' शब्द की व्युत्पत्ति दर्शाने की कोशिश की । 'तेनुगु' शब्द का अर्थ है रास्ता, अत: रास्ते में रहने वाली लोगों की भाषा है तेलुगु । लेकिन इस व्युत्पत्ति में अर्थ - सामंजस्य नहीं बैठता।
(iii) 'गोंडु' प्रजाति के लोगों ने अपनी भाषा को 'कु' भाषा की संज्ञा दी है । कुछ विद्वान मानते हैं कि इस भाषा-समाज से कुछ लोग अलग होकर, दक्षिण में जाकर रहने लगे होंगे । चूंकि मूल - द्रविड में 'तेन' शब्द का अर्थ 'दक्षिण' है, अत: इन लोगों की भाषा 'तेनुगु' (तेन + कु याने दक्षिण की 'कु' भाषा) कहलाई होगी ।
(iv) कुछ विद्वानो द्वारा 'तेनुगु' को संस्कृत के 'त्रिनग' शब्द का बिगड़ा हुआ रूप माना जाता है । ये 'त्रिनग' याने तीन पर्वत हैं श्रीशैलमु, कालेश्वरमु तथा दाक्षाराममु। जैसाकि पहले ही बताया गया है, इतिहासकारों की राय है कि शैव-धर्मावलंबियों द्वारा 'तेलुगु' शब्द का संस्कृतीकरण करके 'त्रिनग' शब्द को प्रचार में लाया गया ।
(v) तेलुगु-तेनुगः- तेलुगु भाषा में कहीं - कहीं ल - न वर्णों की अभेदकता दीख पड़ती है । उदाहरण के तौर पर 'मुनग' शब्द 'मुलग' बन जाता है, 'लेत' शब्द 'नेत' बन जाता है । अत: कुछ विद्वान मानते हैं ल - न कारों के परस्पर विनिमय के कारण 'तेलुगु' से 'तेनुगु' शब्द उत्पन्न हुआ है।
'आंध्र' शब्द की व्युत्पत्तिः-
'आंध्र' शब्द का शाब्दिक अर्थ 'अग्रणी' है । इसका एक और अर्थ 'शिकारी' है, जो प्राय: तेलुगु प्रजाति के आदिम दिनों में समीचीन था । अब हम 'आंध्र' शब्द की व्युत्पत्ति पर गौर करेंगे -
1. अंध (अंधेरा) + रः- (नाश करने वाला) अंध्र याने अंधेरे का विनाश करने वाला ।
2. अंध (जल) + र : (भ्रमण करने वाला) अंध्र याने जलयान करने वाला ।
3. अंध (अन्न) + र : (हस्त वाला) अंध्र याने अन्न रूपी हस्त वाला । माना जाता है कि 'अंध्र' शब्द ही कालांतर में 'आंध्र' शब्द के रूप में परिवर्तित हो गया ।
वास्तव में 'आंध्र' शब्द की व्युत्पत्ति पर और शोध की आवश्यकता है ।
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