‘कविता की पाठशाला’ का लोकर्पण समारोह संपन्न
‘कविता की पाठशाला’ किताब अपने आप में एक अनूठा प्रयोग है जो, बच्चों की कलम से साकार बच्चों की कृति है. संपादक रमेश यादव ने बच्चों की इन कविताओं को संकलित करके नई पौध को पुष्पित करने और उन्हें भाषा से जोड़ने का अनोखा प्रयास किया है.’’ समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ बाल साहित्यकार, कुंडलीकार कपिल कुमार ने ये पंक्तियाँ उदृत की और बच्चों को बेझिझक लिखने के लिए प्रेरित किया. बतौर प्रमुख अथिति गुजराती के वरिष्ठ साहित्यकार यशवंत त्रिवेदी ने एस तरह से और प्रयोग किए जाने और भारतीय भाषाओं को समृद्ध करने का आवाहन किया तथा श्री यादव जी द्वारा किए गए इस कार्य की भूरि- भूरि प्रशंसा की. इस कृति के संपादक रमेश यादव ने अपने वक्तव्य में लोगों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि आज के इस वैश्विकरण के दौर में भारतीय भाषाओं के अस्तित्व को टिकाए रखने के लिए साहित्य और संस्कृति को रोजी – रोटी से जो्ड़ना वक्त का तकाजा है. इसके लिए कलमकारों को जागृत होना पडे़गा. सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सेवारत कर्मियों को ठोस प्रोत्साहन देने की बात पर जोर देते हुए उन्होंने आगे कहा कि स्पोर्टसमॆन और पत्रकारों को जो सुविधायें दी जाती हैं उसी तरह की सुविधाए साहित्यकारों को भी दी जानी चाहिए, तब हमारी अगली पी्ढी़ हिंदी साहित्य को अपनायेगी. पत्रकार और साहित्यकार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.अत:दोनो को समान सरकारी सुविधायें दी जानी चाहिए.
बाल अनुरागी और संगीतकार ऋतिका साहनी ने बदलते समय के साथ बच्चों के साहित्य में बदलाव की जरूरत को महसूस किया और अपने अल्बम में किए गए विविध प्रयोगों को गाकर सुनाया जिसे लोगो ने काफी सराहा. नगरसेविका डा.गीता यादव ने महिला एवं बाल संबंधी विविध योजनाओं और समस्यायों की जानकारी देते हुए इस कृति की सराहना की और कहा कि् बडे़- बडे़ सेमिनारों के साथ – साथ इस तरह के जमिनी स्तर से जुडे़ कार्य भी किए जाने चाहिए, इसलिए आज के इस आयोजन का महत्त्व बढ़ जाता है.प्रकाशक चंद्रकांत जाधव ने भी अपनी बात रखी और आभार व्यक्त किया. इस अवसर पर कुछ बच्चों ने किताब में छ्पी अपनी रचनाओं का बेहतरीन ढंग से पाठ करते हुए लोगो को मंत्र-मुग्ध कर दिया. किताब का लोकार्पण साहित्य अनुरागी महावीर प्रसाद के हाथों संपन्न हुआ. कार्यक्रम का सूत्रसंचालन अरविंद “लेखराज’ ने बडे ही सुंदर ढंग से किया,तो कार्यक्रम के प्रारंभ एवं अंत में संगीतकार पांडूरंग ठाकरे ने प्रार्थना गीत तथा संत ज्ञानेश्वर रचित पसायदान प्रस्तूत करते हुए समाँ बांध दिया.