Saturday, June 27, 2009

हिंदुस्तान पेट्रोलियम चेन्नै प्रशिक्षण एवं प्रयोग केंद्र में हिंदी कंप्यूटर प्रशिक्षण संपन्न



कंप्यूटर के प्रयोग से हिंदी कार्यान्वयन में विकास संभव– श्री अजोय कुमार राज



हिंदुस्तान पेट्रोलियम चेन्नै प्रशिक्षण एवं प्रयोग केंद्र में दि.27.6.2009 को हिंदी कंप्यूटर प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसका उद्घाटन के अवसर पर चेन्नै रिटेल कार्यालय के मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक, श्री अजोय कुमार राज ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि कंप्यूटर के प्रयोग से हिंदी कार्यान्वयन में विकास संभव होगा । कंप्यूटर के प्रयोग से हिंदी में पत्रचार बढ़ाया जा सकता है । उन्होंने सभी प्रतिभागियों से अनुरोध किया कि कंप्यूटर प्रशिक्षण के बाद हिंदी का प्रयोग करते हुए हिंदी से संबंधित सभी निर्धारित लक्ष्य हासिल करने का प्रयास करें । प्रशिक्षण एवं प्रयोग केंद्र की प्रभारी श्रीमती शुभा मुत्तुरामन ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि बूंद-बूंद से सागर बनता है वैसे ही आप सबके लिखे एक-एक अक्षर से हिंदी का विकास होगा । उन्होंने उम्मीद जताया कि इस प्रशिक्षण से सभी प्रतिभागियों को काफी फायदा होगा । कंप्यूटर में हिंदी प्रयोग की कुशलता हासिल करके राजभाषा कार्यान्वयन में प्रयोग किया जाए । हिंदुस्तान पेट्रोलियम के दक्षिणांचल के वरिष्ठ हिंदी अधिकारी डॉ. बशीर ने कंप्यूटर प्रशिक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए वार्षिक कार्याक्रम तथा नकद पुरस्कार योजनाओं के संबंध में भी विस्तार से बताया । प्रशिक्षक के रूप में उपस्थित डॉ. सी. जय शंकर बाबु ने कंप्यूटर में भारतीय भाषाओं के लिए यूनिकोड का प्रयोग, मैक्रोसॉफ्ट ऑफीस में हिंदी में शब्द-संसाधन के संबंध में पवरपाइंट प्रस्तुति के साथ व्याख्यान दिया । इस कार्यशाला में दस अधिकारी उपस्थित थे । इन्हें हिंदी में टंकण, ई-मेल भेजने आदि के संबंध में व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया । समन्वयक श्रीमती कामश्वरी ने धन्यवाद ज्ञापन किया ।

Tuesday, June 23, 2009

डॉ. बालशौरि रेड्डी के लेखन की षष्ठिपूर्ति के उपलक्ष्य में...



युग मानस द्वारा वेब साइट का लोकार्पण



हिंदी के उपन्यासकार एवं सुख्यात लेखक डॉ. बालशौरि रेड्डी के लेखन की षष्ठिपूर्ति के उपलक्ष्य में युग मानस द्वारा निर्मित वेबसाइट का दि.28.6.2009 को चेन्नई में लोकार्पण किया जाएगा । तेलुगु भाषी डॉ. रेड्डी जी के विराट लेखन के आलोक में युग मानस – बालशौरि रेड्डी अभिनंदन अंक (जुलाई-सितंबर, 1998) का प्रकाशन किया गया था जिसका विमोचन दि.30 दिसंबर, 1998 को चेन्नई में हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल महामहिम श्रीमती वी.एस. रमादेवी ने किया था । रेड्डी जी की रचनाओं के वैश्वीकरण के लिए वेब साइट बनाने की संकल्पना युग मानस ने की थी, वह संकल्पना अब उनके लेखन के साठ साल पूरे होने के सुअवसर साकार हो रही है ।



गुंतकल (आंध्र प्रदेश) से प्रकाशित लोकप्रिय हिंदी साहित्यिक त्रैमासिक युग मानस, जो फिलहाल वेब पत्रिका के रूप में प्रकाशित हो रही है; युग मानस साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षिक संस्था की मुख पत्रिका है । यह एकमात्र ऐसा अनुष्ठान है, जो विगत 20 वर्षों से हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार एवं मानवीय मूल्यों के संवर्धन हेतु सक्रिय योगदान दे रहा है । सर्जनात्मक लेखन भारतीय साहित्य को समृद्ध बनाने में योगदान देने वाले रचनाकारों के प्रदेयों का परिचय साहित्यिक संसार को कराने की पहल के अंतर्गत युग मानस द्वारा उनके साहित्य का डिजिटलीकरण एवं वेबसाइटों के माध्यम से दुनियाभर के पाठकों को साहित्य सुलभ कराने का प्रयास युग मानस द्वारा किया जा रहा है । इन्हीं प्रयासों के अंतर्गत डॉ. बालशौरि रेड्डी जी का बेब साइट भी बनाया गया है । युग मानस के संस्थापक एवं संपादक डॉ. सी. जय शंकर बाबु द्वारा बनाया गया इस वेब साइट का लोकार्पण डॉ. बालशौरि रेड्डी स्वयं अपने करकमलों से सुसंपन्न करेंगे । रेड्डी जी के संबंध में परिचयात्मक जानकारी के साथ प्रारंभ होने वाले इस वेब साइट को निरंतर अद्यतन बनाते हुए रेड्डी जी के रचना संसार की तमाम झांकियाँ इसमें प्रस्तुत की जाएंगी । रेड्डी जी के पाठकों, प्रशंसकों के लिए यह निश्चय ही शुभ समाचार है । रेड्डी जी के लेखन के साठ वर्ष पूरा होने तथा उनके 81 वे वर्ष में पदार्पण के शुभ अवसर पर उन्हें बधाई देने के लिए इच्छुक श्रद्धालु सीधा वेब साइट पर अपनी प्रतिक्रिया प्रेषित कर सकते हैं अन्यदा ई-मेल द्वारा balashowrireddy.yugmanas@gmail.com पते पर भेज सकते हैं । डाक द्वारा भेजने के लिए पता – डॉ. सी. जय शंकर बाबु, संपादक, ‘युग मानस’, 18/795/एफ/8-ए, तिलक नगर, गुंतकल (आं.प्र.) – 515 801

Friday, June 19, 2009

आलेख







गांधी की राह पर जापानी संत फुजीई गुरुजी









- चंद्रकांत कृष्णराव हिवरे, पीएच.डी. के शोधार्थी,
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
ई-मेल –
chiware@gmail.com मोबाइल - +91 98223 62182




महात्मा गांधी के सापेक्ष इस वर्तमान दुनिया में कई व्यक्तियों को याद किया जा सकता है, जैसे मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला आदि. लेकिन गांधी के सापेक्ष यदि फुजीई गुरूजी के विषय में विचार करते हैं, तो गांधी की प्रासंगिता के बारे में ही नहीं, बल्कि अंहिसा, सद्भाव व मानव जाति में समानता के उनके संदेश व कार्यों को आगे बढ़ाने की जीवित परंपरा के अनुकरण को सामने देख पाते हैं.
निश्चित रूप से 20 वीं सदी के पहले अर्द्धांश में मात्र महात्मा गांधी का व्यक्तित्व ही ऐसा था, जो शोषण, असमानता, मानव में निहित बुराइयों को लक्षित करते हुए और उसके विरुद्ध संघर्ष करने वाले विश्व के कार्यकर्ताओं के लिए एक प्रेरणा प्रदान करने में सक्षम था. लेकिन गांधी की असमय हुई हत्या ने अहिंसा और समानता के एक वैश्विक आंदोलन में जैसे रोक लगा दी. यह प्रश्न अभी भी शेष है कि यदि गांधीजी जीवित रहते, तो भविष्य में क्या करते. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह तो गांधीजी ने ही घोषित कर दिया था कि वे शांति प्रयासों के लिए पाकिस्तान जाएंगे. लेकिन इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध की महाविभीषकता देखते हुए प्रतीत यही होता है कि जिस भूमिका को बाद में फुजीई गुरुजी ने निभाई, शायद गांधी भी यही करते. स्थानीय मंचों से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे वैश्विक मंचों पर फुजीई गुरुजी ने अहिंसा के संदेश को प्रसारित किया, बल्कि नाभिकीय हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के वैश्विक आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी ही नहीं निभाई, बल्कि इस आंदोलन के सूत्रधार, रणनीतिकार वही थे.
जैसा पूर्व में कहा गया कि गांधी यदि भविष्य में और जीवित रहते, तो क्या करते. निश्चित रूप से भारत के प्रति अपने दायित्व को पूरा करने के बाद वे विश्व के प्रति अपने दायित्व को पूरा करने का प्रयास करते. आज भी विश्व के बड़े से लेकर छोटे सभी देशों में उनके राष्ट्रीय बजट में शिक्षा के लिए जितना पैसा खर्च किया जाता है, उससे कई-कई गुना देश की सुरक्षा व अत्याधुनिक हथियारों पर खर्च होता है. किसी विकसित-अविकसित देश में शिक्षा से ज्यादा पैसा सुरक्षा आदि में खर्च करना निश्चित रूप में एक पापपूर्ण कार्यवाही ही है. फुजीई गुरु के विषय में यह तथ्य हमें एक ऐसे निष्कर्ष की ओर ले जाता है, जिसकी ओर हमारा ध्यान ही कभी नहीं जाता. महात्मा गांधी की पौत्री सुमित्रा कुलकर्णी ने अपने वर्धा में महात्मा गांधी के आश्रम में बिताए वर्षों की याद करते हुए लिखी थी कि ‘आश्रम आने वाले सभी व्यक्ति उन बच्चों से बचते थे, लेकिन फुजीई गुरुजी न केवल बच्चों के संपर्क में स्वयं खुश महसूस करते थे, बल्कि अपनी अध्ययन सामग्री, पूजा साम्रगी आदि के विषय में बच्चों की जिज्ञासा शांत करते थे और अपना अनुकरण करने के लिए प्रेरित करते थे.’ यह बात सामान्य नहीं है. यह तथ्य यह इशारा करता है कि गुरुजी अपनी, अपने समाज की भावी पीढ़ी के प्रति क्या नजरिया रखते थे. यही कारण है कि हम कह सकते हैं कि नाभिकीय हथियारों के विरुद्ध आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भावी पीढ़ी को बचाना और शिक्षित सभ्य और एक सुरक्षित दुनिया देना था.
कई बार ऐसा होता है कि गुरुजी को मात्र एक धार्मिक व्यक्ति समझकर राजनितक विचारों की दुनिया से अलग-थलग कर दिया जाता है. लेकिन वास्तविकता में इस समझदारी में कोई सच्चाई नहीं है, बल्कि यह एक षडयंत्र ही है. क्योंकि इस तर्क से गांधी भी कम धार्मिक व्यक्ति नहीं थे. फिर स्वयं गांधीजी ने गुरुजी के राजनीतिक विचारों का सम्मान किया. एक बार फिर गांधीजी पौत्री सुचित्रा कुलकर्णी के हवाले से कहें कि आश्रम में गुरुजी के आने के बाद ही ना म्यू म्यो हो रंगे क्यो के मंत्र को आश्रम की प्रार्थना में गांधीजी ने शामिल किया था. जो इस बात का संदेश है कि गांधीजी गुरुजी को मात्र एक बौद्ध संत के रूप में नहीं, बल्कि अहिंसा के राजनीति प्रचारक की हैसियत से देख रहे थे.
स्वयं गुरुजी ने अपनी धार्मिकता को कभी मानव समाज के कल्याण के विचार के ऊपर हावी भी नहीं होने दिया. इस बात को इस उदाहरण से समझा जा सकता है. स्वयं गुरुजी ने विश्व में हजारों शांति पैगोडा बनाने के कार्य को किया. इन स्थानों पर हर आम आदमी को जाने की इज़ाजत होती है. अब यदि वे मात्र धार्मिक व्यक्ति होते, निश्चित तौर पर इन स्थानों पर अन्य धर्मों के लोगों को जाने की इज़ाजत नहीं होती. लेकिन ऐसा नहीं है. गुरुजी स्वयं एक बार पैगोडा बनाने का तर्क को बताया था. उनका मानना था कि इन स्थानों को देख कर व्यक्ति के मन पर उस व्यक्ति के विचारों की ओर सोचने का अवसर मिलता है, जिसकी स्मृति में ये बनाए जाते हैं. यह सामान्य जानकारी है कि पैगोडा महात्मा बुद्ध की स्मृति में बानाए जाते हैं और बौद्ध धर्म का तात्पर्य पूरी दुनिया में एक अहिंसा के संदेश से ही लिया जाता है.
वर्तमान की क्रूर हो चुकी दुनिया में, जहाँ आतंकवाद, हिंसा, मानवीय समाज का उत्पीडन, शोषन व वंचन ही विद्यमान है, वहाँ गांधीजी संदेश की हमेशा प्रसांगिता विद्यमान है. लेकिन गांधी के संदेश को वैश्विक स्तर पर किस तरह से कार्यरूप देना है, क्या रणनीति अपनानी है, इसके लिए निश्चित रूप से फुजीई गुरुजी को याद करना पड़ता है. शायद गांधीजी व गुरुजी सम्मान देने का यही तरीका है कि उनके संदेश को किस तरह कार्यरूप में तब्दील किया जाए व आमजन अहिंसा के आदर्शों को अपनाए.

(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में गांधीजी व फुजीई गुरुजी के अंतर्संबंधों पर फुजीई गुरुजी शांति अध्ययन केंद्र में निर्देशक प्रोफ़ेसर मनोज कुमार एवं मनसाराम नितनवरे के मार्गदर्शन पीएच.डी. के लिए शोध कार्य कर रहे हैं.)

श्रीभगवान सिंह और कृष्ण मोहन को राष्ट्रीय सम्मान

प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान की घोषणा

रायपुर । प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा स्थापित प्रथम आलोचना सम्मान भागलपुर के डॉ श्री भगवान सिंह को दिया जायेगा । इसी तरह युवा आलोचना सम्मान बनारस के युवा आलोचक श्री कृष्ण मोहन को दिया जायेगा । श्री सिंह हमारे समय के उन सुप्रतिष्ठित और चर्चित आलोचकों में से है जिन्होंने अपने आलोचनात्मक लेखन से समकालीन साहित्यिक आलोचना और परिदृश्य पर एक अलग लक़ीर खींची है । लगभग सांप्रदायिक और विचाररूढ़ हो उठी आलोचना के बरक्स श्री भगवान सिंह एक स्वतंत्र वैचारिक आधार और जातीय दृष्टि लेकर आये हैं। ख़ास तौर से गतिशील राष्ट्रीय जीवन-प्रवाह और गांधी युग के मूल्यों को केंद्र में रखकर उन्होंने जो एक स्वाधीन आलोचनात्मक तेवर प्रदर्शित और रेखांकित किया है ।
डॉ. कृष्ण मोहन की आलोचना में पिछली आलोचना की मध्यमवर्गीय चेतना की तुलना में एक उदग्र लोकतांत्रिकता और वैचारिक ऊष्मा है । वे हमारे समय के एक संभावनाशील आलोचक हैं ।
वर्तमान में श्री भगवान सिंह तिलका माँझी, भागलपुर, बिहार में हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं एवं श्री मोहन विश्वविद्यालय बीएचयू, वाराणसी में रीडर, हिन्दी के पद पर कार्यरत हैं ।
ज्ञातव्य हो कि इस चयन समिति में कवि केदारनाथ सिंह, दिल्ली, डॉ. धनंजय वर्मा, भोपाल, डॉ. विजय बहादुर सिंह, कोलकाता, डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, गोरखपुर, विश्वरंजन एवं जयप्रकाश मानस थे ।
यह सम्मान उन्हें 10-11 जुलाई को रायपुर में आयोजित दो दिवसीय प्रमोद वर्मा स्मृति समारोह में प्रदान किया जायेगा । सम्मान स्वरूप आलोचक द्वयों को क्रमशः 21 एवं 11 हजार रुपयों सहित प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह, शाल एवं श्रीफल से विभूषित किया जायेगा ।

-- जयप्रकाश मानससंपादकसृजनगाथा

Sunday, June 14, 2009

कविता



तिरुपति श्री बालाजी


- डी. अर्चना, चेन्नै ।




विश्‍व में सबसे प्रसिद्ध पुण्‍यक्षेत्र
तिरुपति श्री बालाजी का पवित्र मंदिर
है विश्‍व में बड़ा मशहूर
श्री वेंकटेश्‍वर स्‍वामी के नाम पर
सात पहाड़ियों के ऊपर बसा सप्‍तगिरि-सुंदर
मनोकामना को पूरा करनेवाला करुणा सागर

अवतार है भगवान विष्‍णु का
मंदिर है यह दो हजार वर्ष पुराना
भक्‍त दैव दर्शन केलिए रहते हैं आतुर
कांति से प्रदीप्‍त मुखारविंद का दर्शन करने
मन के क्‍लेश सब दूर करने
क्षण भर में देखकर
श्री वेंकटेश्‍वर स्‍वामी की दिव्‍य प्रतिमा
हाथों में चक्र व शंख से है शोभायमान
भक्‍तों द्वारा, द्वार पर स्थित वेदी से
प्रभू की पूजा ‘दिव्‍य – अर्चना’ की जाती है
सबसे धनी इस देवालय की संपत्ति
जन कल्याण केलिए व्‍यय की जाती
तिरुमला पहाड़ियों के नीचे स्थित है
तिरुपति नगर में कोंदड रामस्‍वामी पूजनीय
गोविंदराज पेरुमाल मंदिर दर्शनीय
कपिल तीर्थम रमणीय
हर भक्‍त को प्राप्त हो इनका दर्शन
सब करले धन्‍य अपना जीवन ।

Saturday, June 13, 2009

हिंदुस्तान पेट्रोलियम मैसूर एल.पी.जी. संयत्र में हिंदी कार्यशाला संपन्न




सूचना तकनीकी से हिंदी का विकास होगा – डी.एन. कृष्णमूर्ति



हिंदुस्तान पेट्रोलियम मैसूर एल.पी.जी.संयत्र में दि.13.6.2009 को पहली बार हिंदी कंप्यूटर प्रशिक्षण का आयोजन किया गया, जिसके उद्घाटन के अवसर पर एल.पी.जी. मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक, बैंगलूर क्षेत्रीय कार्यालय ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि कंप्यूटर के जरिए हिंदी में पत्रचार बढ़या जा सकता है । उन्होंने सभी प्रशिक्षार्थियों से अनुरोध किया कि मानक मसौदों का अधिकाधिक प्रयोग करें ।


संयत्र के प्रबंधक सारंगी जी ने कहा कि संसदीय समिति के निरीक्षण के बाद हिंदी कार्यान्वयन में हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ रही है । संयत्र सभी क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित की है, साथ-साथ हिंदी कार्यान्वयन में भी प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ है । डॉ. बशीर ने वार्षिक कार्याक्रम तथा नकद पुरस्कार के संबंध में विस्तार से बताया । प्रशिक्षक के रूप में उपस्थित डॉ. सी. जय शंकर बाबु ने कंप्यूटर में भारतीय भाषाओं के लिए यूनिकोड का प्रयोग, मैक्रोसॉफ्ट ऑफीस में हिंदी में शब्द-संसाधन के संबंध में पवरपाइंट प्रस्तुति के साथ व्याख्यान दिया । इस कार्यशाला में संयत्र के 12 अधिकारी उपस्थित थे । इन्हें हिंदी में टंकण, ई-मेल भेजने आदि के संबंध में व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया । समन्वयक अनुराग ठाकुर, श्रीमती भारती गोपाल, श्री चंद्र मोहन के सहयोग से कार्यक्रम सफल रहा ।

Thursday, June 11, 2009

10 जुलाई 2009 को जलवायु परिवर्तन एवं उसके प्रभाव पर एक दिवसीय संगोष्ठी

जलवायु परिवर्तन एवं उसके प्रभाव पर एक दिवसीय संगोष्ठी
10 जुलाई, 2009

ONE DAY SEMINAR ON CLIMATE CHANGE AND ITS IMPACT
10 JULY, 2009

जलवायु परिवर्तन उन अत्यंत गंभीर चुनौतियों में से एक है, जिनका राष्ट्र आज सामना कर रहा है । जलवायु परिवर्तन का पारिस्थितिकी, जैव विविधता, कृषि, प्राकृतिक संसाधन एवं स्वास्थ्य आदि विषयों पर गंभीर प्रभाव पड़ने की संभावना है, जिससे देश की सामाजिक आर्थिक प्रगति प्रभावित होगी । जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणियां अत्यंत गंभीर है । ऐसा अनुमान है कि सदी के अंत तक तापमान 2-2.40 डिग्री तक बढ़ जाएगा। समुद्र का जलस्तर भी 0.18 से 0.59 मीटर तक बढ़ने की संभावना है, जिससे निम्न स्तरीय भू-भाग जलमग्न हो जाएंगे। वर्षण के प्रारूप में भी बदलाव आएगा, जिससे कुछ क्षेत्रों को कम व कुछ को भारी वर्ष की घटनाओं का सामना करना पड़ेगा । जलवायु परिवर्तन के कारण विषम जलवायुवीय घटनाएं जैसे हिमखंडों का पिघलना, सूखा पड़ना, भारी वर्षा, बाढ़, अत्यधिक गर्मी, गर्म लहरें, उष्ण चक्रवात आदि घटनाएं लोगों के रहन-सहन एवं जीविका पर गंभीर प्रभाव डाल सकती हैं । वास्तव में जलवायु परिवर्तन के उपरोक्त प्रभावों को एक साथ नहीं रोका जा सकता, इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि ऐसी योजनाएं बनाई जाएं जिससे वैश्विक तापमान वृध्दि एवं जलवायु परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारकों को कम किया जा सके एवं जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले संभावित खतरों को कम करने के लिए उपयुक्त कदम उठाएं जा सके । वैश्विक एवं राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन को समझने एवं इसके दीर्घ व स्थायी तौर पर प्रबंध करने के लिए शुरूआत की जा चुकी है । 30 जून 2008 को जारी की गई जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय क्रियात्मक कार्य योजना (NAPCC) जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा हुई चुनौतियों से निपटारे के लिए राष्ट्र की एक पहली प्रतिक्रिया है।
गन्ना प्रजनन संस्थान जलवायु परिवर्तन के प्रभाव एवं प्रबंधन विषय पर 10 जुलाई 2009 को एक दिवसीय संगोष्ठी आयोजित कर रहा है । संगोष्ठी का आयोजन नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति (न.रा.का.स), कोयंबत्तूर के सहयोग से किया जा रहा है । संगोष्ठी का उद्देश्य हिस्साधारकों (स्टेकहोल्डरों) एवं जनता को जलवायु परिवर्तन के विषय के प्रति जागृत करने के अलावा वैज्ञानिक संप्रेषणों को हिंदी भाषा में लिखने को बढ़ावा देना भी है । आयोजन समिति कोयंबत्तूर एवं इसके आसपास के सभी अनुसंधान एवं शैक्षणिक संस्थानों का संगोष्ठी में भाग लेने का आग्रह करती है ।
आलेख को जमा करना
उपर्युक्त विषय पर हिंदी में लिखित ए-4 कागज पर छपित आलेख 30 जून, 2009 तक जमा किया जा सकता है । आलेख हिंदी में लिखें । जहाँ कही पर भी तकनीकी शब्द प्रयुक्त करें, उसका कोष्ठक में अंग्रेजी शब्द भी लिख दें । आलेख में शीर्षक, लेखक का नाम व पता, लेख का भाव (abstract) (200 शब्दों से अधिक न हो) परिचय, मुख्य विषय, निष्कर्ष एवं संदर्भ सूची (references) क्रमबध्द होने चाहिए । एक साफ्टकॉपी (soft copy) एम,एस. वर्ड (M.S. Word) में कृति देव फोंट में भी लेख के साथ जमा की जानी चाहिए । प्रत्येक लेखक को पावर प्वाइंट प्रस्तुतीकरण के लिए 15 मिनिट का समय दिया जाएगा, व इसके बाद विचार विमर्श भी होगा ।
पंजीकरण
सहभागियों से अनुरोध है कि वे अपना पंजीकरण, संलगित फार्म को पूरा भरकर रु.200 के पंजीकरण शुल्क के साथ संयोजक को आयोजन दिवस 10.07.2009 से पहले या आयोजन दिवस के मौके पर उपलब्ध कराएं । पंजीकरण शुल्क की राशि रु.200 मांग पत्र (डिमांड ड्राफ्ट) के रूप में, निदेषक, गन्ना प्रजनन संस्थान के नाम, कोयंबत्तूर में देय (payable) होनी चाहिए ।
आयोजन स्थल - सभागार हाल, गन्ना प्रजनन संस्थान, वीरकेलम, कोयंबत्तूर – 641 007
अध्यक्ष
डॉ. एन. विजयन नायर, निदेशक
गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयम्बत्तूर - 7
संयोजक
डॉ. सी. गुप्ता, संयोजक, वरिष्ठ वैज्ञानिक (शस्य विज्ञान)
सह संयोजक
डॉ. आर. जयन्ती,
डॉ. जे श्रीकान्त,
डॉ. रजुला शांति,
डॉ. रवीन्द्र कुमार

सह आयोजक
श्री. बी.एस.वी. शर्मा, अध्यक्ष, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति,
एवं क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त, कोयंबत्तूर
डॉ. सी. जय शंकर बाबु, सदस्य सचिव, न.रा.का.स.
एवं सहायक निदेशक (राजभाषा), कोयंबत्तूर

आयोजन समिति
डॉ. एन.विजयन नायर, निदेशक, अध्यक्ष
डॉ. पी. पदमनाभन, प्रमुख, सुरक्षा अनुभाग
डॉ. एम.एन. प्रमेचन्द्रन, फसल सुधार अनुभाग
डॉ. पी. राक्कियप्पन, फसल उत्पादन अनुभाग
डॉ. आर. नागराजन
डॉ. पी गोपालसुन्दरम
डॉ. एन. प्रकाशम
डॉ. के. हरि
डॉ. पी. गोविन्दराज
डॉ. सी. शंकरनारायण
डा. बी. सिंगारवेलू
डॉ. ए. अन्नादुरै
वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी
श्री. के. के. हम्जा
श्री. एडविन देव कुमार
पत्राचार - संगोष्ठी के विषय में सभी पत्राचार निम्न पते पर भेजे जाने चाहिए ।
1. डॉ. सी. गुप्ता, संयोजक, वरिष्ठ वैज्ञानिक (शस्य विज्ञान)
गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयंबत्तूर - 641007
ई.मेल.- cgupta2006@gmail.com, sugaris@vsnl.com
2. श्रीमती एस. महेश्वरी, हिंदी अनुवादक
हिंदी प्रकोष्ठ, गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयंबत्तूर - 641007 मोबाईल नं. 98433 51266



Monday, June 8, 2009

कृति-चर्चा



पठनीय दोहा संग्रह : 'झुकता है आकाश'



- आचार्य संजीव 'सलिल'



विश्व-वाणी हिंदी के सनातन कोष में 'दोहा' एक ऐसा जाज्वल्यमान काव्य-रत्न है जिसकी कहीं किसी से कोई तुलना नहीं हो सकती. बिंदु में सिन्धु को समाहित करने की क्षमता रखनेवाला लह्ग्वाकारी छंदराज दोहा अपनी मर्मस्पर्शिता, क्षिप्रता, बेधकता, संवेदनशीलता, भाव-प्रवणता, सहजता, सरलता, लय-बद्धता, गेयता, लोकप्रियता तथा अर्थवत्ता के एकादश सोपानों पर आरोहित होकर जन-मन का पर्याय बन गया है.
हिंदी के समयजयी पिंगल-शास्त्र के अनूठे छंद 'दोहा; ने चिरकाल से शब्द्ब्रम्ह आराधकों को अपने आकर्षण-पाश में बाँध रखा है. दोहा के दुर्निवार आकर्षण पर मुग्ध संस्कृत, प्राकृत, डिंगल, अपभ्रंश, शौरसेनी, अंगिका, बज्जिका, मागधी, मैथिली, भोजपुरी, बृज, बुन्देली, बघेली, छत्तीसगढ़ी, हरयाणवी, मारवाडी, हाडौती, गुजराती, मालवी, निमाड़ी, मराठी तथा उर्दू के साथ अब बांग्ला, कोंकणी, मलयालम, कन्नड़, तमिल, कठियावाडी, सिरायकी, डोगरी, असमी, अंग्रेजी भी दोहा की विजय पताका थामे हुए हैं.
दो पद, चार चरण, ४८ मात्राओं के संयोजन से आकारित दोहे के २३ विविध प्रकार हैं जो लघु-गुरु मात्राओं की घट-बढ़ पर आधारित हैं. शताधिक बार दोहा ने इतिहास की गति व् दिशा को प्रभावित तथा परिवर्तित कर लोक-कल्याण का पथ प्रशस्त किया है. ऋषि-मुनि, साधु-संत, पीर-ककीर, विप्र-वनिक, स्वामी-सेवक, रजा-प्रजा, बाल-युवा, स्त्री-पुरुष, रागी-विरागी, धनी-निर्धन, मोही-निर्मोही अर्थात समाज का हर वर्ग दोहा को अपनी आत्माभिव्यक्ति का साधन बनाकर धन्यता अनुभव करता रहा है.
दोहकारों की चिर-चैतन्य, जाग्रत-जीवंत संसद में मालवा की माटी की सौंधी सुवास, क्षिप्रा और नर्मदा के सलिल की मिठास, गणगौर के लोक पर्व की मांगल्य भावना, लोक-गीतों का सारल्य, गाँवों का ठहराव, शहरों की आपाधापी, राजनीति की विषाक्तता, जनगण की वितृष्णा और तमाम विसंगतियों के संत्रास में भी जयी होते आशा-आकांक्षा के स्वरों की अनुगूंज को अपने सृजन कर्म के माध्यम से प्रबलतम और प्रखरतम बनाने का प्रणम्य योगदान कर भाई प्रभु ने प्रवेश किया है. राजनीति शास्त्र, हिंदी व् ज्योतिष में दखल रखनेवाले प्रभु जी ने जीवन बीमा अधिकारी के रूप में समाज के विविध वर्गों से तादात्म्य स्थापित कर उनकी मानसिकता, सोच, अपेक्षाओं, आशाओं-हताशाओं से साक्षात् कर अपने मानस में उसी तरह रख लिया जैसे कुशल कुम्हार अच्छी मिट्टी को रख लेता है. समय के पाद-प्रहारों और अनुभवों के कठोर करों ने शब्द, भाव, रस, बिम्ब लय, प्रतीक और सत्य के कथ्य को दोहाकारित कर दिया है जिसके लालित्य पर हम सब मुग्ध हैं.
दैनंदिन जीवन की जटिलताओं, भग्न होते स्वप्नों, दूर होते अपनों और विघटित होते नपनों की व्यथा-कथा कहते दोहे तपते आकाश में पर तौलने की जिजीविषा भी जगाते हैं. गिरकर उठाने की आकाँक्षा, खाली हाथों जाने के परम सत्य को जानते हुए भी साँसों के सफ़र के लिए कुछ पाथेय जुटा लेने की कामना, अपने से पीछेवाले को आगे न जाने देने-बराबरीवाले से आगे निकलने और आगेवाले को पीछे छोड़ने की जिद, पिछले मोड़ पर कुछ नया न घटने के बाद भी अगले मोड़ पर कुछ अघटित घटने का औत्सुक्य, निष्कलुष शैशव की खिलखिलाहट, कमसिन-किशोरों की भावाकुलता, तारुण्य का हुलास, यौवन का उल्लास, प्रौढ़ता का ठहराव और वार्धक्य की यत्किंचित कटु वीतरागिता के विविधवर्णी फूलों को दोहा के गुलदस्ते में सजाये प्रभु जी माँ शारदा के चरणों में अर्पित कर रहे हैं.
'झुकता है आकाश' के ५१ सर्गों में १०-१० दोहा-मणियों को गूँथते हुए दोहाकार ने यह मनोरम छंद-माल तैयार की है. मालवि के ही नहीं सकल हिंदी साहित्य-जगत के गौरव बालकवि बैरागी जी, शिखर दोहाकार-गीतकार-मुक्तककार-गजलकार अग्रज्वत चंद्रसेन 'विराट', बहुआयामी सृजनधर्मी भाई सदाशिव 'कौतुक' आदि के सत्संग का सौभाग्य पा रहे प्रभु जी का आदि दोहा संग्रह संभावनाओं का नया दीपक जला रहा है.
प्रभु जी के रचनाकार की प्रतिबद्धता शाश्वत मूल्यों की सनातनता और आम आदमी की शुभ-संकल्पमयी प्रवृत्ति को उद्घाटित कार्नर के प्रति है. उन्हीं के शब्दों में- ''मैं आश्वस्त हूँ सामाजिक समरसता, सद्भाव व सहिष्णुता के प्रति और इस तथ्य का पक्षधर हूँ की अँधेरा अधिक समय तक नहीं रहता.''
'झुकता है आकाश' का श्री गणेश राजनैतिक विद्रूपता और पाखंड को उद्घाटित करते दोहों से हुई है.


देश रहे बस ध्यान में, मिटें दलों के भेद.


संसद की दीवार पर, लिख दो इसे कुरेद..


जाति-धर्म के नाम पर, घर-घर भड़की आग.


जिसको देखो डस गया, राजनीति का नाग..


लंगडे-लूले मिल गए, कौन बताये खोट?


सुबह-शाम पहुँचा रहे लोकतंत्र को चोट..


देश रहे बस ध्यान में, समय चक्र की क्रूरता, सरे दल रचते रहे, धवल चाँदनी सी सजे, लोकतंत्र के रूप का, राजनीती में अब नहीं , लगा मुखुअता हंस का तथा भूल गए इतिहास को शीर्षक ८ अध्यायों में प्रभु जी ने सामयिक पारिस्थिक वैषम्य को इंगित करते हुए जन तथा जनप्रतिनिधियों दोनों को सचेत करने का कवि धर्म निभाया है.
चुनौतियों से बिना घबराए, सतत प्रयास से जयी होने का संदेश देते हुए दोहाकार प्राची से ऊषा करे, आलोकित आकाश में, पंछी का ये घोंसला शीर्षक अगले अध्यायों में उज्जवल भविष्य का संकेत करते करता है.


कलरव पंछी को दिया, मिली फूल को गंध.


यत्र-तत्र-सर्वत्र हैं, दाता के अनुबंध..


सूरज की पहली किरण, भरती मन-उल्लास.


कली बदलती फूल में, जीवन में विश्वास..


बैठा है चुपचाप क्यों, चेत सके तो चेत.


समय-चक्र रुकता नहीं, ज्यों मुट्ठी में रेत..


विषमताओं को जीतकर जीवन में छाते उल्लास की छटा है होली के हुडदंग में, वसन सभी गीले हुए, मौसम चढा मुंडेर पर, ताजमहल से झाँकता आदि अध्यायों में.


दर्पण में छबि देखकर, रतिका मत्त गयंद.


भीगे तन पर ज्यों लिखे, मादकता के छंद..


सरसों फूली खेत में, खिलता देख पलाश.


दोनों ही के खाव को समझ गया आकाश..


कोयल कूके डाल पर, सरसों फूली खेत.


टेसू खिलकर दे रहा फागुन के संकेत..


मौसम खिला मुंडेर पर, लिखता मोहक छंद.


धुप सुहागिन फागुनी, बाँटे मधु मकरंद..



इन दोहों में दोहाकार ने चाक्षुष बिम्बों को चिरन्तन प्रतीकों में ढालकर दोहों को सार्थकता दी है. सफलता और सुख का आधिक्य विलासिता को जन्म देता है. इसे इंगित करता कवि अगले अध्यायों में भोग के आधिक्य से बचने का संकेत करता है.


प्रेम-ग्रन्थ वो लिख गए, नजर डालकर एक.


पृष्ठ खोलकर प्यार के, हमने पढ़े अनेक..


गाँव की याद में विकल कवि को महानगर नहीं सुहाता-


मन-पंछी भी चाहता, चलें गाँव की ऑर.


पनघट-पनिहारिन जहाँ, और प्रेम की डोर..


ग्रामीण पृष्ठभूमि के इन सरस दोहों में समाये माधुर्य का आनंद लें-


अल्हड अलसी पूछती, सरसों से ये बात.


चकवा-चकवी जागते, क्योंकर सारी रात..


रूप-रंग का छा गया, अबके बरस बसंत.


नतमस्तक सब हो गए, धूनीवाले संत..


मौसम चढा मुंडेर पर, लिखता मोहक छंद.


धूप सुहागिन फागुनी, बांटे मधु मकरंद..


सरसों फूली खेत में, खिलता देख पलाश.


दोनों के ही भाव को, समझ गया आकाश..


प्रभु जी ऐसे दोहों में अपनी प्रवीणता प्रगट कर सके हैं. इनमें सटीक बिम्ब, मर्यादित श्रृंगार, उन्मुक्त कल्पना तथा सरस सृजनात्मकता सहज दृष्टव्य है.


श्रृंगार और भोग के अतिरेक की वर्जना करता कवि दुराचार ने रच लिया, भौतिक सुख ककी छह में, दौलात्वलों के यहाँ, भय हो मन में राम का आदि अध्यायों में संयम का आग्रह करता है. यह सकारात्मक चितन प्रभु जी का वैशिष्ट्य है.


हिंदी के अमर दोहों में नीतिपरक दोहों का अपना स्थान है. प्रभु जी ने इस परंपरा का निर्वहन पूरी प्रवीणता से किया है-


अधिक बोलने से नहीं, हुआ किसी का मान.


वरना तोते आज तक, कहलाते विद्वान्..


देते रहने का सदा, मन में रखिये ध्यान.


देने से घटता नहीं दान-मान-सम्मान..


क्षणजीवी भोगवादी संस्कृति में 'ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत' की चार्वाकपंथी जीवन शैली के प्रति कवि चेतावनी देता है-


सपने में भी माँगता, कर्जा साहूकार.


कभी ख़त्म होता नहीं, ब्याज-त्याज का भार..


धूप-छाँव की तरह आते-जाते सुख-दुःख पर कवि की समदर्शी दृष्टि देखिये-


सुख की बूँदों ने किया, जब अपना सत्कार.


बैरी बनकर आ गया, दुःख पंछी है बार..


इस दोहा संग्रह के उत्तरार्ध में दोहाकार फिर सामयिक समस्याओं, विसंगतियों और विडंबनाओं पर केन्द्रित होता है, मानो एक चक्र पूर्ण हुआ...जहाँ से इति वहीं अंत...इसे जीवन चक्र कहें या प्रकृति चक्र...यह आप पर निर्भर है.


शब्द-सिपाही प्रभु शब्द-शक्ति से सुपरिचित हैं. वे कहते हैं-


खेल बड़ा गंभीर है, शब्दों का श्रीमान.


शब्दों से ही देवता, हो जाते पाषाण..


पर्यावरण की समस्या को कवि ने अपने ढंग से उठाया है-


पनिहारिन का रंज ये, कौन निहारे रूप?


ताल-तालियाँ रिक्त हैं, सूखे हैं नल-कूप..


आम्रकुंज की कोकिला, गुमसुम है भयभीत.


ज्न्गाक में दिनभर चले, आरी का संगीत..


पभु जी ने मानवीय संबंधों को लेकर भी अच्छे दोहे कहे हैं-


घर में तीरथ आपके, क्या काशी-हरिद्वार?


मात-पिता की भावना, का होता सत्कार..


शीतल मंद बयार है, सुख-सागर का रूप.


हरे नीम की छाँव सी, माँ जाड़े की धूप..


बेटी घर की आबरू, आँगन की मुस्कान.


कस्तूरी मृग जिस तरह, जंगल का अभिमान..


मिसरी जैसी घुल सके, खुशियों की बरसात.


हृदयवान के घर बसे, बहिना की सौगात..


भाभी माँ का रूप है, भाई पिता समान.


आँखें अपनी खो रही, इस युग की सन्तान..


उच्चतम न्यायालय ने जीवन में सुख चाहनेवालों को पत्नी के अनुरूप चलने की सलाह अब दी है किन्तु कवि तो इस सत्य को चिर काल से मानते आये हैं स्व. गोपालप्रसाद व्यास तो 'पत्नी को परमेश्वर मानो' का आव्हान कर पत्नीवाद के प्रवर्तक ही बन गए. प्रभु जी भी भार्या-वन्दन की महिमा से परिचित हैं-


पत्नी घर की मालकिन, चाबी उसके पास.


ताले में सब बंद हैं, सुख-दुःख, हास-विलास..


इस संग्रह के दोहों में प्रभु ने भाषिक औदार्यता को अपनाया है. वे जाय, छाय, फ्रीज (फ्रिज), पशु (पशु), नय्या (नैया), आवे (आये), इक (एक), पंगु (पंगु), भय्या (भैया), बतियांय, लगांय, होय, सिखलाय, पांय, गाय(पशु नहीं), लेय, छलकाय, बौराय, पाय, सुनाय, रोय, होय, पे(पर), घबराय, प्रभू (प्रभु), कबिरा, आँय, रख्खा, समझाय,राखिए (रखिये), जाव, सुझाव जैसे शब्द-रूपों के प्रति सदय हैं. संस्कृत, उर्दू, अँग्रेजी बृज आदि के शब्द इन दोहों में हैं किन्तु मालवी-निमाड़ी का स्पर्श न होना विस्मित करता है.


पाकर फूल किताब में, गुल्बदानों के हाथ.


होंठ नहीं जो कह सके, समझ गए वह बात..
में सम चरणों में तुकांत दोष है.


'इज्जत मान-अपमान का' (१४ मात्रा) में मात्राधिक्य है. यह अपवाद स्वरूप है.
'नव वर्ष है नई सदी' का लय-दोष नया वर्ष है नव सदी' करने से दूर हो सकता है.
चन्द्र के दाग सदृश अपवादों को छोड़कर सकल संकलन दोहों के उत्तम रूप को सामने लाता है.
कवि ने जहाँ-जहाँ प्रकृति का मानवीकरण या मानव का प्रकृतिकरण किया है वहाँ-वहाँ दोहों का शिल्प निखरा है. आँगन की मुस्कान, अल्हड अलसी, चित्त चकोर, धूप सुहागिन, हवा निगोड़ी, देह हुई कचनार, प्यासी धरती, सुबह सलोनी, प्रकृति नटी, बेटी कोमल फूल सी, मन पंछी, प्रेम ग्रन्थ, प्रेम पुष्प आदि प्रयोग पाठक के मन को बाँधते हैं.
श्रृंगार, शांत, वात्सल्य, भक्ति, करुण रसों की उपस्थति इस संग्रह में है किन्तु हास्य, वीर, वीभत्स, अद्भुत या भयानक अनुपस्थित हैं. व्यंग भी कहीं-कहीं मुखर हुआ है.
दीवारों के कान, आँगन की लाज, खून बहाना, कोल्हू का बैल जैसे मुहावरों और उलटबांसियों का प्रयोग दोहों को जीवन्तता प्रदान करता है.
कवि ने शब्दालंकारों और अर्थालंकारों दोनों का कुशलता से प्रयोग किया है. कवियों में सर्वाधिक लोकप्रिय अनुप्रास में वृन्त्यानुप्रास तथा लाटानुप्रास नहीं है किन्तु दोहा के छंद-विधान-बंधन के कारण सम तुकान्ती सम चरणान्त में अन्त्यानुप्रास सर्वत्र है. 'दीप धरो उस द्वार पर', 'निकल पड़ा दिनमान', किसका चलता जोर', भारत में बाज़ार' आदि में श्रुत्यानुप्रास, है जबकि 'स्वर्ण कलश कर में लिए' में छेकानुप्रास है.

यमक अलंकार अपवादवत् 'माया ने माया रची' में है. श्लेष अलंकार -'कली बदलती फूल में' में है जहाँ कली तथा बेटी के बढ़ने के दो अर्थ मिलते हैं.
प्रभु जी उपमा तथा रूपक अपेकशाकृत अधिक प्रिय हैं.
पूर्णोपमा - दुल्हिन सी लिपटी रही, बेल प्रेम के साथ, हुए कागजी फूल सम आपस के सम्बन्ध, जल जैसा निर्मल रहे, ऐसा व्यक्ति महान आदि में है, जहाँ उपमेय, उपमान, साधारण धर्म तथा वाचक शब्द सहज दृष्टव्य हैं.
'सोने जैसी रात', मतदाता से मिल रहे जैसे भारत मिलाप, तथा 'पल-पल भरता आह सा' आदि में उपमान लुप्तोपमा है. 'मरहम जैसी बन गयी यह पहली बरसात' तथा 'हवा निगोडी यूं चले ज्यों बिरहा के तीर' में धर्म लुप्तोपमा है. लालच-गैया, प्रेम-प्यार की बेल, खुशियों का मधुमास, यादों के मेहमान,तन-मन का भूचाल, मन-मौर, बर्बादी के किवाड़, मन तेरा आकाश, समय-चक्र आदि में रूपक की छटा है.
'खाली बर्तन हो रहा इस युग का इन्सान', दर्पण में छवि देखकर, खुद है रतिका दंग' तथा 'समाया गवाही दे रहा' आदि में उत्प्रेक्षा है.
प्रभु त्रिवेदी जी के ये दोहे मन को स्पर्श करते है तथा तथ्य-कथ्य को पाठक तक पहुँचा पाते हैं. दोहाकार का सकारात्मक चिंतन उज्जवल भविष्य को संकेतित करता है-


स्वर्ण-कलश कर में लिए निकल पड़ा दिनमान.


दिशा-दिशा सुख बाँटता, यही महा अभियान..


दीप धरो उस द्वार पर, जहाँ अभी अँधियार.


संभव है इस रीत से जगमग हो संसार..


प्रभु जी का यह प्रथम संकलन अपने गुणवत्ता से अगले संकलन की प्रतीक्षा करने के लिये प्रेरित करता है. इस अच्छी कृति के लिए वे बधाई के पात्र हैं.


कृति- झुकता है आकाश,
विधा- दोहा संग्रह,
कृतिकार: प्रभु त्रिवेदी,
आकार- डिमाई,
आवरण- सजिल्द-बहुरंगी,
पृष्ठ- ११८, मूल्य- १५०रु.,
प्रकाशक- नमन प्रकाशन, दिल्ली,
कृतिकार संपर्क- १११ राम-रहीम उपनिवेश, राऊ, इंदौर, दूरभाष- ०७३१-२८५६६४४, चलभाष- ९४२५० ७६९९६, चिटठा- ह्त्त्प://प्रणम्यसाहित्य.ब्लागस्पाट.कॉम, ई डाक-
प्रभुत्रिवेदी२१@जीमेल.कॉम" href="http://mail.google.com/mail/h/unlpnaq8a752/?v=b&cs=wh&to=प्रभुत्रिवेदी२१@जीमेल.कॉम)